भारत पाकिस्तान का विभाजन 15 अगस्त 1947 को हुआ था। आप में से कुछ लोग सोच रहे होंगे कि पाकिस्तान तो अपना स्वतंत्रता दिवस 14 अगस्त को मनाता है, तो यहां पर यह समझने की आवश्यकता है कि पाकिस्तान भी भारत की तरह पहले 15 अगस्त 1947 को ही अपना Independence day मनाता था और यह तारीख बाद में राजनीतिक कारणों से बदली गई । इसीलिए अगर कोई सवाल पूछे कि भारत पाकिस्तान का विभाजन कब हुआ था? तो उसका जवाब होगा 15 अगस्त 1947 ।
भारत पाकिस्तान का विभाजन भारतीय इतिहास के सबसे खून भरे पन्नों में से एक है। यह इतनी भयंकर त्रासदी थी कि आज भी कुछ परिवार सीमा के दोनों ओर partition का नाम सुनते ही सिहर उठते हैं । आजाद भारत एवं पाकिस्तान के एक दूसरे के प्रति दुश्मनी के कारण को समझने के लिए भारत-पाकिस्तान के विभाजन को समझना अत्यंत आवश्यक है । इसीलिए हमने प्रयास किया है कि आपको भारत-पाकिस्तान के विभाजन की कहानी शुरू से अंत तक समझाने का प्रयास करेंगे ।

कांग्रेस का दृष्टिकोण :- भारत एवं पाकिस्तान के विभाजन के दो सबसे महत्वपूर्ण संगठन कांग्रेसी एवं ऑल इंडिया मुस्लिम लीग थे। कांग्रेस एक पूरी तरह से अखिल भारतीय पार्टी थी अर्थात एक तरफ इस संगठन के पास तमिलनाडु में भी सीटें थी वहीं दूसरी तरफ इस संगठन के पास नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस में भी सीटें थी । कांग्रेस पार्टी अपनी स्थापना के समय से ही धर्मनिरपेक्ष पार्टी थी, इसने कभी किसी धर्म विशेष के लिए किसी तरह की मांग नहीं उठाई। इसीलिए जब भारत एवं पाकिस्तान के विभाजन की बात उठी तो कांग्रेस पार्टी ने इसका सख्त विरोध किया। कांग्रेस पार्टी का मानना था कि वह किसी एक धर्म का प्रतिनिधित्व नहीं करती है बल्कि संपूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व करती है जिसमें कई धर्म के लोग निवास करते हैं।
कांग्रेस तत्कालीन ब्रिटिश राज के इस कानून का भी पुरजोर विरोध कर रही थी जिसके अनुसार हिंदुओं व मुसलमानों के लिए उन्होंने अलग-अलग Electorate बनाई थी । कांग्रेस पार्टी का मानना था कि यह अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति का एक हिस्सा थी जिसमें वे मुसलमानों से मुसलमानों को वोट करने के लिए कहते थे और हिंदुओं से हिंदुओं को वोट करने के लिए कहते थे। कांग्रेस पार्टी कितनी धर्मनिरपेक्ष थी इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आजादी के पहले इसके सबसे ज्यादा समय तक रहने वाले अध्यक्षों में अबुल कलाम आजाद सबसे प्रमुख थे। यही नहीं जब कांग्रेस पार्टी और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के बीच भारत-पाकिस्तान के विभाजन को लेकर Negotiations चल रहे थे तब भी कांग्रेस पार्टी का प्रतिनिधित्व अबुल कलाम आजाद कर रहे थे जो कि एक मुस्लिम थे।
कांग्रेस पार्टी का प्रमुख लक्ष्य भारत को अंग्रेजों से आजादी दिलाना था और भारत की एकता एवं अखंडता को बनाए रखना था इसके लिए एक समय कहा जाता है कि महात्मा गांधी ने मोहम्मद अली जिन्ना को इस बात का प्रस्ताव दिया कि अगर वे भारत एवं पाकिस्तान के विभाजन की जिद छोड़ दे तो कांग्रेसी उनको प्रधानमंत्री बनाने के लिए तैयार है।अब आप में से कुछ लोग सोच रहे होंगे की जब कांग्रेस विभाजन के इतने खिलाफ थी तो भारत का विभाजन उसने होने कैसे दिया, इस बात का जवाब आपको article के अगले पन्नों पर मिलेगा ध्यान से पढ़ते रहिए।
ऑल इंडिया मुस्लिम लीग का दृष्टिकोण :- ऑल इंडिया मुस्लिम लीग का दृष्टिकोण समझने से पहले आपको यह समझना होगा कि इस पार्टी की स्थापना कैसे हुई, किसने की और किस लक्ष्य को लेकर हुई। ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की स्थापना तत्कालीन भारत के रहीस मुसलमानों ने की जिन्हें लगता था कि कांग्रेस पार्टी के भूमि सुधार उनसे उनकी कीमती जमीन छीन लेंगे, और इसी को बचाने के लिए उन्होंने धर्म के नाम पर इस संगठन का गठन किया।
आपको इस बात के सबूत आजाद पाकिस्तान में मिलते हैं, क्योंकि वहां कभी भूमि सुधार नहीं होने दिया गए जबकि भारत के शुरुआती चरणों में ही भूमि सुधार किए गए। आपको इस बात को जानकर आश्चर्य होगा कि ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की स्थापना में तत्कालीन ब्रिटिश राज ने भरपूर मदद की थी, क्योंकि वह इसे कांग्रेस के खिलाफ एक Alternative संगठन के रूप में खड़ा करना चाहते थे। अंग्रेज इस बात से भरपूर वाकिफ थे कि हिंदू मुसलमान अगर एक हो गए तो अंग्रेज भारत में ज्यादा दिन नहीं रह पाएंगे इसीलिए उन्होंने इनकी एकता को तोड़ने के लिए ऑल इंडिया मुस्लिम लीग जैसे संगठन को खड़ा करने में मदद की और इसीलिए ऑल इंडिया मुस्लिम लीग ने लंबे समय तक भारत में अंग्रेजों के रहने को लेकर किसी तरह का विरोध नहीं किया बल्कि वे हमेशा अंग्रेजों के प्रति वफादारी दिखाते रहते।
अब आपको यह समझना होगा कि मुस्लिम लीग ने कब अलग पाकिस्तान की मांग उठाई। आपको यह समझना होगा कि ऑल इंडिया मुस्लिम लीग ने शुरुआत से ही अलग पाकिस्तान की मांग नहीं की थी। वैसे तो समय-समय पर इसके कई सदस्य अलग मुस्लिम देश के बारे में बोलते रहते , परंतु इस पार्टी ने आधिकारिक रूप से कभी इस तरह की कोई मांग नहीं की थी। यह मांग 1940 में पहली बार ऑल इंडिया मुस्लिम लीग ने सामने रखी जब इसका प्रतिनिधित्व मोहम्मद अली जिन्ना कर रहे थे। इस मांग के पीछे मोहम्मद अली जिन्ना का तर्क था कि हिंदू बहुमत वाले किसी भी देश में मुसलमानों को उनके सही हक नहीं दिए जाएंगे और इसीलिए मुसलमानों के लिए अलग देश बनाना ही उचित है, इसी को आप Two Nation theory नाम से जानते हैं ।
कांग्रेस पार्टी को इस बात के लिए मनाने के लिए मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा कि वह अलग पाकिस्तान की मांग छोड़ सकते हैं अगर एक ऐसा फेडरल स्ट्रक्चर बनाया जाए जहां पर सेंटर के पास बहुत कम अधिकार हो और राज्य के पास बहुत अधिक अधिकार हो इस तरह से मुस्लिम बहुल राज्य अपना शासन केंद्र के दखल के बिना आसानी से चला सकेंगे, परंतु कांग्रेस ने उनकी इस मांग को अस्वीकार कर दिया, कांग्रेस का कहना था कि एक नए देश को चलाने के लिए मजबूत केंद्र जरूरी है, और जिस तरह के अधिकार मोहम्मद अली जिन्ना मांग रहे थे अगर उन्हें वैसे अधिकार दे दिए गए तो भारत एक ना एक दिन गृह युद्ध में फंस जाएगा।
क्रिप्स मिशन :- क्रिप्स मिशन 1942 में ब्रिटिश सरकार के द्वारा भारत को भेजा गया एक प्रतिनिधिमंडल था जिसका नेतृत्व सर स्टेफोर्ड क्रिप्स कर रहे थे। क्रिप्स लेबर पार्टी से आते थे और लेबर पार्टी का मानना था कि आज नहीं तो कल भारत को आजादी देनी पड़ेगी परंतु अगर भारत के साथ आजादी के बाद भी सही संबंध रखने हैं तो उसके साथ दोस्ती के प्रयास अभी से चालू करने पड़ेंगे इसीलिए क्रिप्स मिशन को भारत भेजा गया था कि वे कांग्रेस एवं ऑल इंडिया मुस्लिम लीग से बात कर आजाद भारत की संरचना बना सके।
वैसे तो कांग्रेस पार्टी और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग बहुत ही कम मुद्दों पर एक साथ आती थी पर क्रिप्स मिशन का विरोध करते हुए वे दोनों एक ही मंच पर थी। इसका कारण था कि क्रिप्स मिशन यह चाहता था कि भारत को पूर्ण आजादी ना देकर एक डोमिनियन स्टेटस दिया जाए जैसा कि ऑस्ट्रेलिया एवं कैनेडा को दिया गया था। कांग्रेसी एवं ऑल इंडिया मुस्लिम लीग दोनों ही इसका सख्त विरोध कर रही थी। कांग्रेस ने तो इसका विरोध करते हुए भारत छोड़ो आंदोलन ही चालू कर दिया, ऑल इंडिया मुस्लिम लीग इस आंदोलन का हिस्सा तो नहीं बनी परंतु उसने क्रिप्स मिशन की किसी बात को मानने से भी इंकार कर दिया। क्रिप्स मिशन के ताबूत में अंतिम कील तो तब लग गई जब भारत में ही इसके विरोध के साथ साथ ब्रिटेन में चर्चिल भी इसका विरोध करने लगे। क्रिप्स mission पूरी तरह असफल रहा और इसके साथ कांग्रेस पार्टी और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग में समझौते की अंतिम उम्मीद भी खत्म हो गई।
1946 के इलेक्शन :- 1946 के इलेक्शन के बारे में बात करने से पहले आपको यह समझना होगा कि कांग्रेस एवं ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की स्थिति क्या थी। कांग्रेस पार्टी यह दावा करती थी कि वह सभी हिंदुस्तानियों का प्रतिनिधित्व करती है चाहे वह हिंदू हो, मुसलमान हो या किसी और धर्म के हो। वही ऑल इंडिया मुस्लिम लीग इस बात का दावा करती थी कि वह सभी मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करती है। 1946 के election के पूर्व जितने भी इलेक्शन हुए थे उन सभी में कांग्रेस ने भारी मात्रा में विजय प्राप्त की थी, कांग्रेस न सिर्फ सामान्य सीटों पर जीत रही थी बल्कि उन सीटों पर भी जीत रही थी जो मुसलमानों के लिए आरक्षित थी, इसीलिए उनका तर्क सही था कि वे सभी तरह के हिंदुस्तानियों का प्रतिनिधित्व करती हैं परंतु यह बात 1946 के इलेक्शन के बाद बदल जाने वाली थी।
वैसे तो 1946 जनवरी में हुए election में भी कांग्रेस ने बहुमत प्राप्त किया था परंतु इस बार बात कुछ अलग थी। मुसलमानों के लिए आरक्षित 476 सीटों में से 425 सीटों पर ऑल इंडिया मुस्लिम लीग ने विजय प्राप्त की और इस बड़ी जीत के साथ ही उनका यह तर्क और भी मजबूत हो गया कि वह मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस चुनाव में जीत के साथ ऑल इंडिया मुस्लिम लीग और भी ज्यादा आत्मविश्वास के साथ अलग पाकिस्तान की मांग करने लगे। वहीं कांग्रेस ने यह तर्क दिया कि बलूचिस्तान जैसे मुस्लिम बहुल इलाके में भी कांग्रेस ने विजय प्राप्त की है और सिर्फ एक ही चुनाव में कुछ ज्यादा सीटें ले आने से यह नहीं कहा जा सकता कि सारे मुसलमान पाकिस्तान चाहते हैं।
कांग्रेस ने यह तर्क भी दिया कि मुस्लिम लीग को जितनी सीटें मिली है उनमें से ज्यादातर सीटें तो उन राज्यों पर मिली है जो future में भारत का हिस्सा होंगी जैसे कि उत्तर प्रदेश, बिहार आदि अर्थात इन लोगों ने मुस्लिम लीग को वोट दिया होगा पर यह वोट अलग पाकिस्तान के लिए नहीं है। वैसे तो कांग्रेस को कुल मिलाकर मुस्लिम लीग से दोगुनी से भी ज्यादा सीटें मिली थी परंतु ब्रिटिश सरकार हमेशा मुस्लिम लीग का पक्ष लेने के लिए जानी जाती थी इसीलिए वे धीरे-धीरे मुस्लिम लीग के इस तर्क को भी स्वीकार करने लगे।
तत्कालीन वैश्विक राजनीति : –वर्तमान भारत में जब भारत एवं पाकिस्तान विभाजन की बात की जाती है तो इस मुद्दे को हमेशा छोड़ दिया जाता है कि तत्कालीन वैश्विक राजनीति ने भारत पाकिस्तान विभाजन में क्या भूमिका अदा की थी जबकि यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका थी।
दूसरा विश्व युद्ध खत्म होते तक विंस्टन चर्चिल ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे और ऐसा माना जाता है कि उनकी सरकार ने तत्कालीन कांग्रेस के बड़े नेता नेहरू को इस बात का प्रस्ताव दिया कि अगर नेहरू इस बात का वादा करें कि आजादी के बाद वे शीत युद्ध में अमेरिका और ग्रेट ब्रिटेन का साथ देंगे तो वह भारत विभाजन को रोक सकते हैं, परंतु नेहरू ने ऐसा कुछ भी करने से साफ इंकार कर दिया। नेहरू जी का तर्क था कि भारत एक आजाद मुल्क होगा जो अपनी विदेश नीति खुद बनाएगा वह किसी और देश के पीछे पीछे चलने पर विश्वास नहीं करेगा। नेहरू जी की बात कितनी सही थी इस बात से ही पता चलता है कि आजाद भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व किया जो इस बात का तर्क रखता था कि किसी देश को सोवियत संघ या अमेरिका के पास जाने की आवश्यकता नहीं है बल्कि वे अपनी विदेश नीति स्वतंत्रता पूर्वक बना सकते हैं ।
जब यही प्रस्ताव मोहम्मद अली जिन्ना के पास गया तो उन्होंने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया तब ऐसा माना जाता है कि पाकिस्तान का बनना निश्चित हो गया था क्योंकि भारत अगर कांग्रेस के नेतृत्व में आजाद विदेश नीति बनाएगा तो भारतीय उपमहाद्वीप में कोई तो ऐसा देश होना चाहिए जो उनके अनुसार चले इसीलिए उन्होंने पाकिस्तान जैसे देश का समर्थन किया जो अपनी विदेश नीति अमेरिका और ब्रिटेन के गुट के अनुसार बनाएं।
डायरेक्ट एक्शन :– अभी तक आपने जो कुछ पढ़ा है उससे आपको इतना तो पता चल गया होगा कि कांग्रेस पार्टी विभाजन के सख्त खिलाफ थी फिर आप सोच रहे होंगे कि आखिर कैसे यहां पार्टी विभाजन के लिए तैयार हो गई, तो उसका सबसे बड़ा कारण 1946 से शुरू होने वाली भयानक हिंसा थी। कांग्रेस और उसके शीर्ष नेता जैसे कि जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल , अबुल कलाम आजाद और इन सबसे ऊपर महात्मा गांधी इस बात से अत्यंत चिंतित थे कि हिंदू मुसलमानों के बीच होने वाले दंगे में देश का भयानक नुकसान हो रहा था और इसे वे किसी भी कीमत पर रोकना चाहते थे। कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेता इस बात को समझ चुके थे कि जब तक एक अलग देश बनाने के लिए सहमति नहीं दी जाती है तब तक यह दंगे नहीं रुकेंगे क्योंकि इन दंगों की शुरुआत एक पार्टी ने की थी जिसका नाम था ऑल इंडिया मुस्लिम लीग। चलिए आपको इन दंगों की शुरुआत पर ले चलते है।
1946 का अगस्त का महीना आते तक, मुस्लिम लीग ने यह देखा कि कांग्रेस पार्टी बहुत सारे लोगों को यह मनाने में कामयाब हो रही है कि भारत को एक ही रहने देने में फायदा है। इस बात से भयभीत होकर कि कहीं अलग पाकिस्तान बनाने का विचार लोग छोड़ ही ना दें मुस्लिम लीग ने यह निर्णय लिया कि किसी भी तरह इस विचार को वापस से समाचार पत्रों के फ्रंट पेज पर लेकर आना जरूरी है। इसके लिए 16 अगस्त 1946 को मोहम्मद अली जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन डे घोषित किया, उन्होंने इसकी घोषणा करते हुए एक भयभीत करने वाला बयान दिया जो कि इस तरह से था “either a divided India or a destroyed India.” जिसका मतलब है कि अगर हमें विभाजन नहीं मिला तो हम हिंदुस्तान का ही विनाश कर देंगे।
उनकी इस घोषणा के बाद बंगाल के इलाकों में तुरंत ही दंगे चालू हो गए जिसमें सबसे ज्यादा मौतें कोलकाता शहर में हुई । परंतु दुर्भाग्यवश दंगों की आग बंगाल में ही नहीं रुकी , बंगाल के बाद यह आग बिहार एवं उत्तर प्रदेश में फैल गई और धीरे-धीरे पंजाब के इलाकों में दंगे होने लगे जो कि अब तक का सबसे भयानक रूप ले चुके थे। 1946 में शुरू हुए दंगे 1947 तक चलने थे जिसमें लाखों लोगों की जानें चली गई और इन दंगों की शुरुआत डायरेक्ट एक्शन डे के दिन हुई थी, जो कि भारत को विभाजित करने के लिए मुस्लिम लीग की एक घोषणा थी।
अंतिम कदम- रेडक्लिफ :- एक बार जब कांग्रेस पार्टी और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग में इस बात के लिए सहमति बन गई कि भारत का विभाजन अवश्यंभावी है, तो ब्रिटिश सरकार ने इस विभाजन की सीमा बनाने के लिए सर सीरिल रेडक्लिफ को भारत भेजा। रेडक्लिफ भारत के भूगोल से इतनी अच्छी तरह परिचित नहीं थे इसीलिए उन्होंने इस सीमा रेखा को बनाने के लिए जरूरत से ज्यादा समय लिया और जितना ज्यादा समय लिया जमीन पर उतना ही ज्यादा खून बहा ,हम समझाते हैं क्यों? जैसे-जैसे रेडक्लिफ भारत-पाकिस्तान की सीमा बनाते जा रहे थे वैसे वैसे लोगों को पता चलते जा रहा था कि कौन सा शहर पाकिस्तान के हिस्से आया और कौन सा शहर भारत के हिस्से आया । सबसे ज्यादा विवाद बंगाल एवं पंजाब के इलाके में था क्योंकि इन दोनों राज्यों का एक प्रकार से विभाजन हो रहा था।
रेडक्लिफ ने आबादी के आधार पर शहरों को पाकिस्तान एवं हिंदुस्तान को देना शुरू किया था। इसीलिए दंगे में शामिल लोगों ने शहरों की आबादी में दूसरे धर्म के लोगों के खिलाफ अत्याचार करना शुरू कर दिया था ताकि वे इस शहर को छोड़कर चले जाएं और यह इलाका उनके धर्म विशेष के लिए पाकिस्तान या हिंदुस्तान में शामिल कर दिया जाए। इस तरह से रेडक्लिफ की देरी से हजारों जाने और चली गई।
अंत में विभाजन परंतु अंतिम विभाजन नहीं :- अंत में 15 अगस्त 1947 को भारत एवं पाकिस्तान नाम के दो स्वतंत्र देश दुनिया के नक्शे में आए। एक देश का नाम भारत था जो भारतीयों के लिए बना था वहीं दूसरे देश का नाम पाकिस्तान था जो केवल मुसलमानों के लिए बना था। पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना हमेशा यह तर्क देते थे कि हिंदू एवं मुसलमान साथ में नहीं रह सकते और सारे मुसलमान एक साथ रह सकते हैं परंतु उनका यह तर्क बेकार रह गया जब 1970 के आसपास अलग बांग्लादेश की मांग उठने लगी।
तत्कालीन बांग्लादेश को उस समय पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था और पश्चिमी पाकिस्तान की तरह यहां पर भी मुसलमानों की आबादी ज्यादा थी परंतु पश्चिमी पाकिस्तान एवं पूर्वी पाकिस्तान के बीच में भाषा का फर्क था, पश्चिमी पाकिस्तान ने उर्दू पूर्वी पाकिस्तान के बंगालियों पर थोपने की कोशिश की जिसका यहां के बंगालियों ने पुरजोर विरोध किया और इस विरोध का अंत एक नए आजाद मुल्क बांग्लादेश के गठन के साथ खत्म हुआ। सरल शब्दों में कहा जाए तो 15 अगस्त 1947 का विभाजन अंतिम विभाजन नहीं था पाकिस्तान का एक और विभाजन होने वाला था 1971 में।